भांडवपुर महातीर्थ में तत्वत्रयी प्रतिष्ठा महामहोत्सव में कर्नाटक के राज्यपाल गहलोत ने किया गुरु भगवंतों का वंदन

भांडवपुर महातीर्थ में तत्वत्रयी प्रतिष्ठा महामहोत्सव में कर्नाटक के राज्यपाल गहलोत ने किया गुरु भगवंतों का वंदन
Gautam Adani Bhandavpur

मुनिराज श्री शांतिविजय जी म. सा.

श्रीमदविजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म. सा.

राजस्थान के मुख्यमंत्री जी को दिया आमंत्रण

श्री भांडवपुर जैन महातीर्थ

इतिहास: –

विक्रम की सातवीं शताब्दी में दियावट पट्टी में स्थित बेसाला (विशाला) नामक कस्बा था | जिसमें श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सैकड़ों समृद्ध परिवार थे । उस विशाला नगरी में भव्य विशाल सौध शिखरी जिन मन्दिर का निर्माण करवाकर सम्वत् 813 मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी सोमवार को श्री महावीर प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा की गई । प्रतिष्ठाकारक आचार्य भगवन्त किस गच्छ के और कौन थे, इसका प्रमाण दर्शक लेख प्रतिमा या जिन मन्दिर में नहीं है । मात्र जिनालय के एक स्तम्भ पर ‘813 श्री महावीर’ इतना लेख उत्कीर्ण है | उसी के आधार पर उक्त बात लिखी गई है ।

कालान्तर में मेमन धाड़ेतियों के धाड़ के करणा मन्दिर एवं विशाला नगरी खण्डहर बन गई | दैवयोग से प्रभु महावीर की प्रतिमा अखण्ड रही | निकटवर्ती कोमता ग्रामवासी श्रीपालजी संघवी आदि जैन संघ श्री वीर प्रभु को लेने बेसाला (वर्तमान  में व्याला) आये । श्री वीर प्रभु को बैलगाड़ी में बिराजित कर कोमता ग्राम की ओर प्रस्थान किया, परन्तु जब बैलगाड़ी नहीं चली तब सभी ने स्तुति पूर्वक वीर प्रभु को प्रार्थना की कि ‘हे प्रभु ! आपकी इच्छा हो वहाँ पधारिये । हम आपके पीछे –पीछे चलेंगे | ऐसी प्रार्थना कर बैलों की रस्सी खोल दी । स्वत: बैल चलने शुरू हुए जो वर्तमान के पोषाणा मेंगलवा होकर भाण्डुक वन (वर्तमान में भुण्डवा) जंगल में बैलगाड़ी आकर रुक गई । पुनः वहाँ से आगे चलाने के लाख प्रयत्न किए परन्तु सभी प्रयास निष्फल हुए | पिछली रात्रि में श्रीपालजी संघवी को स्वप्न में अधिष्ठायक देव ने कहा कि ‘प्रभु वीर की यहीं बिराजमान होने की इच्छा है । अत: तेरी शक्ति मुजब चैत्य बनवाकर प्रभु वीर की प्रतिमाजी स्थापित कर, उनकी सेवना पूजना करने से तुम्हारी भी सभी ओर से वृद्धि होगी | ‘श्रीपालजी संघवी ने प्रात: सभी को स्वप्न सम्बन्धी आदेश कह सुनाया | सभी ने एकमत बनकर वि. सं.1065 में ऊँची कुर्सी पर शिखरबद्ध  मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया । वि.सं.1100 के माघ शुक्ला पंचमी गुरुवार के शुभ दिन शुभ लग्नांश में विधिपूर्वक भगवान श्री महावीरस्वामीजी की प्रभावशाली प्राचीन प्रतिमाजी को गादिनशीन (प्रतिष्ठित) की और शिखर पर स्वर्णकलश–ध्वजदण्ड स्थापित किए ।

तत्त्वत्रयी प्रतिष्ठोत्सव आमंत्रण पत्रिका यहाँ से डाउनलोड करें।

तत्त्वत्रयी प्रतिष्ठा उत्सव के बचे दिन –

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